मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र खरगौन में पिछ़ड़ापन, संसाधनों की कमी और गरीबी ही मुख्य पहचान है। ऐसे क्षेत्र की 5 बालिकाओं अदिति रावल, अनुजा खेड़े, पूनम चौहान, लक्ष्मी पाटीदार और शिवानी वर्मा ने आईआईटी जेई मेन्स की परीक्षा उत्तीर्ण कर खरगोन से 21 किलोमीटर दूर जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी में प्रवेश लिया। इंस्टीट्यूट जाने के लिये रोज 25 किलोमीटर का सफर, संसाधनों का अभाव उन्हें विचलित नही कर सका। सभी प्रकार की दुश्वारियों से संघर्ष करते हुए उन्होंने बोरावां स्थिति इंस्टीट्यूट पहुंचने के लिये रोजाना 25 किमी की दूरी तय की।
आई.आई.टी. मुंबई द्वारा सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले विद्यार्थियों को विज्ञान में नित नये हो रहे शोध से परिचित कराने के लिये एक निःशुल्क कार्यक्रम चलाया जाता है। जिसका पता चलने पर इन छात्राओं ने 3डी एनिमेशन से संबंधित प्रोजेक्ट में भाग लिया। साल भर के इस पाठ्यक्रम के नियम के अनुसार बाद में एक प्रोजेक्ट पर काम करना होता है, जिसके अंक नही जोड़े जाते हैं। समस्या यह आई कि 5 छात्राओं में से सिर्फ 1 छात्रा के पास ही कम्प्यूटर था और एक प्रोजेक्ट पर मात्र 3 छात्रायें ही ही काम कर सकती थी।
इंस्टीट्यूट घर से 25 किलोमीटर दूर था जहां तक पहुंचने का साधन सिर्फ इंस्टीट्यूट की बस थी, इसलिये कक्षा समाप्त होने के तुरंत बाद घर आना होता था। ऐसे में प्रोजेक्ट पर काम करना शेष 4 छात्राओं के लिये संभव नही था। 3 छात्रायें एक प्रोजेक्ट पर काम करती तो 2 छात्राओं को प्रोजेक्ट से वंचित रह जाना पड़ता। समस्या के हल के लिये उन्होंने आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर डॉ. समीर सहस्रबुद्धे को मेल कर 3 के स्थान पर 5 छात्राओं को एक प्रोजेक्ट पर काम करने की अनुमति मांगी। सामान्य तौर पर छात्र उन परीक्षाओं को छोड़ देते हैं जिनके अंक नही जोड़े जाते, ऐसे में डॉ. सहस्रबुद्धे ने उन्हें कहा कि यह प्रोजेक्ट आव्वश्यक नही है, अतः यदि वे चाहें तो प्रोजेक्ट को छोड़ सकती हैं।
कुछ सीखने की इच्छा और लगन ने छात्राओं को इस उत्तर से संतुष्ट नही किया। उन्होंने डॉ. सहस्रबुद्धे से मेल मे कहा कि उन्हें अंको की नही, कुछ सीखने की इच्छा है, और वह आईआईटी मुंबई को अपना प्रोजेक्ट बना कर देना चाहती हैं। इस एक उत्तर ने डॉ. सहस्रबुद्धे को बोरावां को गूगल पर ढूंढने के लिये प्रेरित किया कि वह कौन सी जगह है जहाँ के छात्र अंक मिलने के स्थान पर सीखने को वरीयता देते हैं।
गूगल पर ढूंढने के बाद डॉ. सहस्रबुद्धे ने इंस्टीट्यूट के प्राचार्य से संपर्क किया तथा उन छात्राओं से वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये बात की। छात्राओं के प्रश्न, उनके उत्तर से अभिभूत हो डॉ. सहस्रबुद्धे स्वयं खरगोन पहुंचे तथा इन छात्राओं की लगन, इच्छाशक्ति और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर एक वृतचित्र बनाया। जीवन में कुछ सीखने और अंकों के स्थान पर कुछ करने की इच्छाशक्ति ने आईआईटी के प्रोफेसर को पांचों छात्राओं को एक प्रोजेक्ट पर काम करने की अनुमति देने को प्रेरित किया।
इन छात्राओं के ऊपर डॉ. सहस्रबुद्धे ने ‘पंचकन्या’ नाम की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई, जिसे https://www.youtube.com/watch?v=JK8ItwSbC78 पर देखा जा सकता है। इस पूरी घटना पर डॉ. सहस्रबुद्धे का कहना था कि छात्राओं का मेल भावुक करने वाला था, विपरीत परिस्थितियों के बाद भी उनकी दृढ इच्छाशक्ति और एकाग्रता देखकर मैं अभिभूत हुआ, मैने इन पर डॉक्यूमेंट्री बनाने का निर्णय लिया ताकि अन्य विद्यार्थियों को भी प्रोत्साहित किया जा सके।