भीमा कोरेगांव हिंसा से सरकार गिराने का प्रयास कर रहे थे सामाजिक वामपंथी कार्यकर्ता।



महाराष्ट पुलिस ने मुंबई उच्च न्यायालय में शपथ पत्र देकर कहा है कि अरुण फरेरा, वर्नोन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज, वी.वरवर राव, गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े इत्यादि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सीपीआई (माओवादी) से संबंध रखते हैं तथा दलितों को सरकार के विरुद्ध लामबंद कर उन्हें भड़का रहे थे।

पुलिस द्वारा की गयी जांच के दौरान यह पता चला है कि सीपीआई (माओवादी) संगठन का उद्देश्य राजनैतिक सत्ता को हथियाना है और इसके लिये यह संगठन लोगों को लामबंद कर उन्हें सैन्य और पारंपरिक लड़ाई के द्वारा जनयुद्ध छेड़ रहा है। यह संगठन दलितों को ऊंची जातियों के विरुद्ध भड़का कर, उन्हें संघर्ष करने के लिये उकसाता है। दिसंबर 31, 2017 को भी एल्गार परिषद की एक बैठक में फरेरा और अन्य आरोपित व्यक्तियों ने बड़ी संख्या में दलित संगठनों को इकट्ठा कर भड़काऊ भाषण दिये, ताकि वह समाज के अन्य वर्गों के विरुद्ध संघर्ष करें।

सीपीआई के कुछ सदस्यों ने इस बैठक के लिये धन भी दिया। देश में प्रतिबंधित इस संगठन के साथ फरेरा तथा अन्य लोगों की इच्छा हिंसा फैलाकर अराजकता और आतंक का वातावरण तैयार कर लोकतांत्रिक रूप से चुनी सरकार को गिराने की है। इन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य को भड़काने के लिये पुस्तिकायें तथा पर्चे बांटे, जिससे भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी 2018 को दंगा फैला।

मुंबई पुलिस अरुण फरेरा की जमानत दिये जाने की प्रार्थना का विरोध कर रही है तथा इस के लिये न्यायालय में शपथ पत्र दिया गया है। माओवादी वर्षों से देश में हिंसा और अराजकता फैलाने में जुटे हैं, किसी समय नक्सलवाद का विस्तार बिहार, छत्तीसगढ, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश के साथ ही अन्य राज्यों में फैला था, विकास के कारण लोगों को जब सुविधायें और रोजगार के अवसर मिले तो माओवादियों के प्रति उनकी सहानुभूति में कमी आई, आज की युवा पीढी माओवाद के साथ नही जुड़ना चाहती। ऐसी अवस्था में अब छद्म रूप से समाज में बैठे माओवाद समर्थक दलितों को भड़का कर उन्हें भी अपनी अराजकता और हिंसा में साथ लाना चाहते हैं। भीमा कोरेगांव की घटना इनके इन्हीं प्रयासों का परिणाम थी।


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